"मेरे आज़ाद शेर" भाग 'चार'
चमकीली रूह क़ो ,जमीं पे न गिरने दो
उड़ जायेंगे ये कुछ यूँ ,झोंके हवा के बनके।
मुक्क़दर नहीं है तेरा ,मिट्टी में यूँ ही मिलना
मिलना ही है तो मिल जा ,बन जा तूं कोई सपना।
याद है लतीफ़ा ,मेरे वालिद सुनाया करते
जिन्न से भरा वो बोतल ,मुझको दिखाया करते।
दुनियां भरी है जिन्न से ,किसको भरूँ जहन में
बोतल है मेरी ख़ाली ,किसको लगाऊँ मन से।
ख़ाली है मेरी वादी ,सुनी मेरी रियासत
घोड़ों की टापें कहतीं ,गुज़री मेरी कहानी।
एक वक़्त था वो भी ,सबकी कहानी लिखता
बन गया ख़ुद कहानी ,ताबूत में यूँ आक़र।
बादशाह तो मैं अब भी हूँ ,ख़ामोश मेरे प्यादे
बादशाहत है मेरी क़ायम ,बस दबीं जुबां से।
पत्थर में मैं दफ़न हूँ ,बुत्त ख़ामोश बनकर
सीने ढकें हैं मे्रे ,मिट्टी की धूल बनकर।
सिर पे लगें हैं पत्थर ,कुछ जानशीं बनके
तराशा है ख़ुद, ख़ुदा ने ,नुमाइंदगी में मे्रे आक़र।
"एकलव्य"
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