मच्छर बहुत हैं,आजकल
गलियों में मेरे।
बात कुछ और है
उनकी गली की !
लिक्विडेटर लगाकर सोते हैं वे
भेजने को गलियों में मेरे
क्योंकि !
संवेदनाएं न शेष हैं ,अब
मानवता की।
मच्छर बहुत हैं,आजकल
गलियों में मेरे।
पानी ही पानी रह गया
घुलकर रसायन रक्त में
अब कह दिया है
छोड़ने को
गालियाँ जो उनकी
थीं कभी
उन मच्छरों से।
क्या करूँ,
दिल है बड़ा
मेरा अभी भी
अंजान मेहमानों के लिए
सो मच्छर बहुत हैं,आजकल
गलियों में मेरे।
चूसना है
चूस लो !
ऐ उड़ने वालों
फ़र्क क्या ?
उनकी गलियों के निवासी
तुम थे कभी।
मच्छर बहुत हैं,आजकल
गलियों में मेरे।
धीरज धरो ! तुम ना डरो
जेब है ख़ाली मेरी।
अशक्त हूँ और त्रस्त भी
उनकी कृपा है।
'लिक्विडेटर' ,बात छोड़ो !
रोटी के लाले पड़े हैं।
श्वास जब तक
है भरोसा !
मेरी रहेंगी सर्वदा
गालियाँ खुलीं।
मच्छर बहुत हैं,आजकल
गलियों में मेरे।
मत लजाना !
रोज आना
रक्तपान कर
तृप्ति पाना।
जो मिले
उनको भी लाना।
हा ....हा ... हा।
क्या करूँ ?
मच्छर बहुत हैं, आजकल
गलियों में मेरे।
"एकलव्य"
गलियों में मेरे।
बात कुछ और है
उनकी गली की !
लिक्विडेटर लगाकर सोते हैं वे
भेजने को गलियों में मेरे
क्योंकि !
संवेदनाएं न शेष हैं ,अब
मानवता की।
मच्छर बहुत हैं,आजकल
गलियों में मेरे।
पानी ही पानी रह गया
घुलकर रसायन रक्त में
अब कह दिया है
छोड़ने को
गालियाँ जो उनकी
थीं कभी
उन मच्छरों से।
क्या करूँ,
दिल है बड़ा
मेरा अभी भी
अंजान मेहमानों के लिए
सो मच्छर बहुत हैं,आजकल
गलियों में मेरे।
चूसना है
चूस लो !
ऐ उड़ने वालों
फ़र्क क्या ?
उनकी गलियों के निवासी
तुम थे कभी।
मच्छर बहुत हैं,आजकल
गलियों में मेरे।
धीरज धरो ! तुम ना डरो
जेब है ख़ाली मेरी।
अशक्त हूँ और त्रस्त भी
उनकी कृपा है।
'लिक्विडेटर' ,बात छोड़ो !
रोटी के लाले पड़े हैं।
श्वास जब तक
है भरोसा !
मेरी रहेंगी सर्वदा
गालियाँ खुलीं।
मच्छर बहुत हैं,आजकल
गलियों में मेरे।
मत लजाना !
रोज आना
रक्तपान कर
तृप्ति पाना।
जो मिले
उनको भी लाना।
हा ....हा ... हा।
क्या करूँ ?
मच्छर बहुत हैं, आजकल
गलियों में मेरे।
"एकलव्य"
छायाचित्र :साभार गूगल