वो दूध पिलाती
माता !
वो गले लगाती
माता !
कोमल चक्षु में
अश्रु लेकर
तुझे बुलाती
माता !
वो जग दिखलाती
माता !
तुझको बहलाती
माता !
तेरे सिर को
हृदय लगाये
ब्रह्माण्ड समेटे
गाथा !
रोती सड़क पे
माता !
जिसको छोड़ा
तूने कहकर
अब तेरा
भाग्य ! विधाता
स्मरण नहीं क्या ? तुझको
आता !
ईश्वर का स्पर्श थी
माता !
हुआ आज मन
कलुषित ! तेरा
कहता, तुझमें
दरिद्र समाता !
लालचवश है
बोझ ! बताता
गृह तेरा संकीर्ण
हुआ रे !
बूढ़ी माँ को
व्यर्थ रूलाता !
देख ! तनिक तूं
नयन में उसके
तीनों लोक है
माता !
क्यूँ ? करता,फेरे
मंदिर-मस्ज़िद के
अनुपम ! ख़ुदा
बुलाता
रे ! पापी
निर्लज्ज तूँ मानव
तुझको कुछ नहीं
आता !
ईश्वर की,स्वर्ग सी
भेंट है वो !
जिसको तूँ
बिसराता
मुक्ति मार्ग ! की
इच्छा करता
मन, वन-वन
भटकाता
देख ! वही है
ज्ञान पुंज,
जिसको देख
न पाता
बिन उसके
दुनियां में कौन ? रोटी
तुझे खिलाता
प्राणदायिनी ! जननी वो
तूँ जिसको, ठुकराता
हे ! मानव
तूँ देख ! तनिक
जीवन, प्राण-पिपासा
तेरी प्यारी
माता !
वो दूध पिलाती
माता !
वो गले लगाती
माता !
"एकलव्य"
माता !
वो गले लगाती
माता !
कोमल चक्षु में
अश्रु लेकर
तुझे बुलाती
माता !
वो जग दिखलाती
माता !
तुझको बहलाती
माता !
तेरे सिर को
हृदय लगाये
ब्रह्माण्ड समेटे
गाथा !
रोती सड़क पे
माता !
जिसको छोड़ा
तूने कहकर
अब तेरा
भाग्य ! विधाता
स्मरण नहीं क्या ? तुझको
आता !
ईश्वर का स्पर्श थी
माता !
हुआ आज मन
कलुषित ! तेरा
कहता, तुझमें
दरिद्र समाता !
लालचवश है
बोझ ! बताता
गृह तेरा संकीर्ण
हुआ रे !
बूढ़ी माँ को
व्यर्थ रूलाता !
देख ! तनिक तूं
नयन में उसके
तीनों लोक है
माता !
क्यूँ ? करता,फेरे
मंदिर-मस्ज़िद के
अनुपम ! ख़ुदा
बुलाता
रे ! पापी
निर्लज्ज तूँ मानव
तुझको कुछ नहीं
आता !
ईश्वर की,स्वर्ग सी
भेंट है वो !
जिसको तूँ
बिसराता
मुक्ति मार्ग ! की
इच्छा करता
मन, वन-वन
भटकाता
देख ! वही है
ज्ञान पुंज,
जिसको देख
न पाता
बिन उसके
दुनियां में कौन ? रोटी
तुझे खिलाता
प्राणदायिनी ! जननी वो
तूँ जिसको, ठुकराता
हे ! मानव
तूँ देख ! तनिक
जीवन, प्राण-पिपासा
तेरी प्यारी
माता !
वो दूध पिलाती
माता !
वो गले लगाती
माता !
"एकलव्य"