प्रस्तुत 'रचना' उन पूँजीपतियों एवं धनाढ्य वर्ग के लोगों के प्रति एक 'आक्रोश' है जो देश के प्राकृतिक स्रोतों एवं सुख-सुविधाओं का ध्रुवीकरण करने में विश्वास रखते हैं। मेरी रचना का उद्देश्य किसी जाति,धर्म व सम्प्रदाय विशेष को आहत करना नही है ,परन्तु यदि कोई व्यक्ति इस रचना को किसी जाति,धर्म व सम्प्रदाय विशेष से जोड़ता है तो ये उसके स्वयं के विचार होंगे। धन्यवाद "एकलव्य"
जूतियाँ !
मैली-कुचैली
सिर पे रखना
धर्म तेरा !
सिंहासनों पे
वे हैं बैठे !
सिर झुकाना
गर्व तेरा !
जूतियाँ !
मैली-कुचैली
सिर पे रखना
धर्म तेरा !
पालकी में
वे हैं ऐंठे !
काँधे लगाना
कर्म तेरा !
जूतियाँ !
मैली-कुचैली
सिर पे रखना
धर्म तेरा !
शताब्दियों से
दास था ! तूं
बोझ उठाना
मर्म तेरा !
जूतियाँ !
मैली-कुचैली
सिर पे रखना
धर्म तेरा !
भाग्य में !
चोंटें लिखी हैं
नमक छिड़कना
शर्त तेरा !
जूतियाँ !
मैली-कुचैली
सिर पे रखना
धर्म तेरा !
आज़ादी हो !
या ग़ुलामी
भाग्य ही,अब
ज़ख्म तेरा !
जूतियाँ !
मैली-कुचैली
सिर पे रखना
धर्म तेरा !
उतारेंगे ! वो
तेरी खालें
मूक होना
रंज तेरा !
जूतियाँ !
मैली-कुचैली
सिर पे रखना
धर्म तेरा !
हल चलाता !
छातियों पे
स्वर्ण उगाना
कर्तव्य तेरा !
काटेंगे ! वो
स्वर्ण तेरे
खूटियाँ हैं
मर्ज़ तेरा !
जूतियाँ !
मैली-कुचैली
सिर पे रखना
धर्म तेरा !
कुचलेंगे !
सीने,तुम्हारे
उनकी विरासत
भाग्य तेरा !
जूतियाँ !
मैली-कुचैली
सिर पे रखना
धर्म तेरा !
अन्न ! छोड़
जल भी नही है
पीने को
बस,रक्त ! तेरा
जूतियाँ !
मैली-कुचैली
सिर पे रखना
धर्म तेरा !
मलिन ! ही
जन्मा जगत में
गलियों में है
मरण ! तेरा
भाग्य ! तेरा
कर्म !तेरा
मर्म में
लिपटा हुआ
चिरस्थाई
अक़्स ! तेरा
जूतियाँ !
मैली-कुचैली
सिर पे रखना
धर्म तेरा !
"एकलव्य"
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