मंगलवार, 9 मई 2017

"जूतियाँ !"


प्रस्तुत 'रचना' उन पूँजीपतियों एवं धनाढ्य वर्ग के लोगों के प्रति एक 'आक्रोश' है जो देश के प्राकृतिक स्रोतों एवं सुख-सुविधाओं का ध्रुवीकरण करने में विश्वास रखते हैं। मेरी रचना का उद्देश्य  किसी जाति,धर्म व सम्प्रदाय विशेष को आहत करना नही है ,परन्तु यदि कोई व्यक्ति  इस रचना को  किसी जाति,धर्म व सम्प्रदाय विशेष से जोड़ता है तो ये उसके स्वयं के विचार होंगे। धन्यवाद "एकलव्य"     


जूतियाँ !

मैली-कुचैली
सिर पे रखना
धर्म तेरा !


सिंहासनों पे

वे हैं बैठे !
सिर झुकाना
गर्व तेरा !


जूतियाँ !

मैली-कुचैली
सिर पे रखना
धर्म तेरा !


पालकी में

वे हैं ऐंठे !
काँधे लगाना
कर्म तेरा !


जूतियाँ !

मैली-कुचैली
सिर पे रखना
धर्म तेरा !


शताब्दियों से

दास था ! तूं
बोझ उठाना
मर्म तेरा !


जूतियाँ !

मैली-कुचैली
सिर पे रखना
धर्म तेरा !


भाग्य में !

चोंटें लिखी हैं
नमक छिड़कना
शर्त तेरा !


जूतियाँ !

मैली-कुचैली
सिर पे रखना
धर्म तेरा !


आज़ादी हो !

या ग़ुलामी
भाग्य ही,अब
ज़ख्म तेरा !


जूतियाँ !

मैली-कुचैली
सिर पे रखना
धर्म तेरा !


उतारेंगे ! वो

तेरी खालें
मूक होना
रंज तेरा !


जूतियाँ !

मैली-कुचैली
सिर पे रखना
धर्म तेरा !


हल चलाता !

छातियों पे
स्वर्ण उगाना
कर्तव्य तेरा !


काटेंगे ! वो

स्वर्ण तेरे
खूटियाँ हैं
मर्ज़ तेरा !


जूतियाँ !

मैली-कुचैली
सिर पे रखना
धर्म तेरा !


कुचलेंगे !

सीने,तुम्हारे
उनकी विरासत
भाग्य तेरा !


जूतियाँ !

मैली-कुचैली
सिर पे रखना
धर्म तेरा !


अन्न ! छोड़

जल भी नही है
पीने को
बस,रक्त ! तेरा


जूतियाँ !

मैली-कुचैली
सिर पे रखना
धर्म तेरा !


मलिन ! ही

जन्मा जगत में
गलियों में है
मरण ! तेरा


भाग्य ! तेरा

कर्म !तेरा
मर्म में
लिपटा  हुआ
चिरस्थाई
अक़्स ! तेरा


जूतियाँ !

मैली-कुचैली
सिर पे रखना
धर्म तेरा !



"एकलव्य"


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