"तैरतीं ख़्वाहिशें" भाग 'पाँच'
"तैरतीं ख़्वाहिशें" |
आज़ मैं फिर सपनें देखता हूँ
आज़ फिर,दिल को सेंकता हूँ
आज़ फिर वही,मेरी महफ़िल सुनसान
आज़ फिर वही ,मेरी दुनियां वीरान,
आज़ फिर जहन में वो ख़्वाहिश
आज़ फिर मेरे सूने आँगन में ,एक नई फ़रमाईश
आज़ फिर वही होंठों पर आते-आते,लफ्ज़ों का रुकना
आज़ फिर वही,रुके हुए अल्फाज़ों का होंठों से फिसलना,
आज़ फिर वही,दिल की अधूरी चाहत
आज़ फिर वही,दिल को थोड़ी सी राहत
आज़ फिर दिल का फिसलना,एक अज़नबी से रुबरु होकर
आज़ फिर गिरते-गिरते संभलना,अंजानी राहों से होकर,
आज़ फिर वही,ज़ालिम ज़मानें का फ़ब्तियाँ कसना
आज़ फिर वही न चाहते हुए भी,लोगों को अनसुनी करना,
आज़ फिर वही,अनजानी महफ़िल में शामिल होना
आज़ फिर वही,अकेली रातों में कुछ गुनगुनाना,
आज़ फिर वही,अपने चौबारों से लोगों को देखना
आज़ फिर वही,अनजाने अपने को देखकर दिल का धड़कना,
आज़ फिर वही,इस पागल दिल को समझाना
आज़ फिर वही,अपने ख़्वाहिशों को फुसलाना,
आज़ फिर वही,गहरे ख़्यालों में डूबना
आज़ फिर वही,सतह पर उतराना,
आज़ फिर वही,अंधेरे बंद कमरों में चीखना
आज़ फिर वही,अकेले में यूँ ही बड़बड़ाना
आज़ फिर वही,जी भर रो लेना
आज़ फिर वही,निकलते आँसूओं को अपने गर्म हथेली से पोंछना
और हँसने का झूठा नाटक करना
आज़ फिर वही दूर तक,अकेले ही निकल जाना,
आज़ फिर वही,मैख़ानों में ज़िंदादिली का एहसास
आज़ फिर वही,लफ्ज़ों पर अधूरी सी प्यास,
आज़ फिर वही,पीकर दुनियां को भुलाना
आज़ फिर वही,पीने के बाद उनकी याद आना
आज़ फिर वही,मैख़ानों में अज़नबियों से बातें
आज़ फिर वही,याद आईं उनके पहलूँ में बीतीं रातें,
आज़ फिर वही,बोतल पे सिर रखकर रोना
आज़ फिर वही,अपने होशों-हवाश खोना,
आज़ फिर कहीं,गलियों के नालों पर बेसुध पड़ा होना
आज़ फिर वही,किसी अज़नबी का सहारा लेना,
आज़ फिर वही,अंधेरे कमरे में पड़े-पड़े उनकी याद में रोना
आज़ फिर वही,अकेले रोते-रोते सोना
ज़ारी है,आज़ भी
कल भी
ज़ारी रहेगा अंतिम साँसों तक। बस तेरी याद में......
"एकलव्य"
"एकलव्य की प्यारी रचनायें" एक ह्रदयस्पर्शी हिंदी कविताओं एवं विचारों का संग्रह |
छाया चित्र स्रोत : https://pixabay.com/
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें