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गुरुवार, 16 मार्च 2017

"हाँ,मैं मन हूँ"


                                                 "हाँ,मैं मन हूँ"
 "हाँ,मैं मन हूँ" 


हाँ मैं मन हूँ 
मानव का करतल हूँ 
आत्मा से द्वेष रखता  
चिरस्थाई महल हूँ 
हाँ,मैं मन हूँ....... 

प्राणी को उद्वेलित करता  
बनके सवेंदनायें,प्रबल हूँ 
बन अशक्त जो बैठा प्राणी 
प्रस्फुटित करता तरंग हूँ
हाँ,मैं मन हूँ....... 

मृत हुई जो तेरी इच्छा 
प्राण फूँकता,नवल हूँ 
भरता हूँ,चेतना की लहरें 
प्रेरणा एक,सबल हूँ
हाँ,मैं मन हूँ....... 

कोई कहे मैं,विचलित होता  
माया रूपी,छल हूँ  
कहते कुछ,पाखंडी मुझको 
दिवास्वप्न में,खल हूँ 
हाँ,मैं मन हूँ.......

विचलित सारथी,तूँ रथ का 
केवल मैं तो,चल हूँ 
मैं कहता,श्रीमान आपसे 
मानव का संबल हूँ 
हाँ,मैं मन हूँ.......हाँ,मैं मन हूँ.......



                      "एकलव्य"
"मेरी रचनायें मेरे अंदर मचे अंतर्द्वंद का परिणाम हैं"  
 
छाया चित्र स्रोत :https://pixabay.com/

 

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