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शनिवार, 25 फ़रवरी 2017

"बारिश तो होगी ,माँ न होगी"


                                                                     "बारिश तो होगी ,माँ न होगी"                   


दरवाज़े पर बैठी रोती है आज भी ,अपने बेटों के लिये
आँखें बूढ़ी हों चलीं ,सलामती की दुआओं में उसकी ,

झिड़कती थी ,तड़पती थी ,रो लेती एक पल
माँ जो कभी डाँटती थी ,मुझको दो पल ,

आँखों से अमृत ,मुँह से शहद की वो बूंदें
जिसके लिये तरसता हूँ ,एक पल आज भी ,

खाने को आवाज लगाती ,कुछ एहसास जगाती
आज तो भूख लगती है ,आवाज नहीं आती
खाना तो खाता हूँ ,प्यास नहीं लगती ,

सोकर जगता था ,माँ नहलाती थी मुझको
खेलकर आता ,माँ खिलाती मुझको
आज सुनी पड़ी गलियां मेरी ,एक आवाज को
गलियों  में माँ आवाज लगाती मुझको

कभी न कभी वो छोड़ जायेगी मुझको
माँ याद आयेगी ,बहुत मुझको ,

सावन तो आएगा ,वो बात न होगी
बारिश तो होगी ,माँ न होगी। .........


                               "एकलव्य"    
   
                           

छाया चित्र स्रोत: https://pixabay.com

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