"बारिश तो होगी ,माँ न होगी"
दरवाज़े पर बैठी रोती है आज भी ,अपने बेटों के लिये
आँखें बूढ़ी हों चलीं ,सलामती की दुआओं में उसकी ,
झिड़कती थी ,तड़पती थी ,रो लेती एक पल
माँ जो कभी डाँटती थी ,मुझको दो पल ,
आँखों से अमृत ,मुँह से शहद की वो बूंदें
जिसके लिये तरसता हूँ ,एक पल आज भी ,
खाने को आवाज लगाती ,कुछ एहसास जगाती
आज तो भूख लगती है ,आवाज नहीं आती
खाना तो खाता हूँ ,प्यास नहीं लगती ,
सोकर जगता था ,माँ नहलाती थी मुझको
खेलकर आता ,माँ खिलाती मुझको
आज सुनी पड़ी गलियां मेरी ,एक आवाज को
गलियों में माँ आवाज लगाती मुझको
कभी न कभी वो छोड़ जायेगी मुझको
माँ याद आयेगी ,बहुत मुझको ,
सावन तो आएगा ,वो बात न होगी
बारिश तो होगी ,माँ न होगी। .........
"एकलव्य"
छाया चित्र स्रोत: https://pixabay.com
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