"इज़हारे दिल"
आज़ बड़ी बेबाक़ी से इज़हारे दिल करता हूँ
आज़ बड़े ही संज़ीदगी से ,दिल की बात रखता हूँ,
जब किसी शख़्स से मिलता था पहली बार
न जाने क्यूँ मन उसे अपना मानता था बार -बार,
वही शख़्स बीच राहों में मुझे छोड़ जाया करता था पराया कह के
इस पागल मन को ,तसल्ली देता था हज़ार बार ,
आज़ फ़िर वही मंज़र ज़िन्दगी में दोबारा दिखता है
आज़ फ़िर वही खारे पानी का समंदर मुझे प्यारा लगता है ,
आज़ फिर वही पुरानी राहें
आज़ फिर कुछ नई सी पुरानी निग़ाहें
आज़ फिर वही पुराने दिनों की आहट
आज़ फिर दिल के कोनों में
एक नई सी छटपटाहट
इस कम्बख़्त दिल को रोक रही हैं ,
क्या करूँ ,जाऊँ की ना जाऊँ
क्या करूँ ,सपने सजाऊँ की ना सजाऊँ
वही पुरानी धुन ,फिर से गाऊं या ना गाऊं
ओ मेरे मौला ,कुछ राह तो दिखा
नहीं तो अपने पास बुला
या तू ही इस दिल को समझा।
"एकलव्य "
1 टिप्पणी:
How sweet
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