"तूँ क़िताब"
तूँ क़िताब यूँ बन के आई
नैनों में तूँ ऐसी छाई
शब्दों में ऐसा प्यार छिपा है
लगे हो यूँ ,संसार बसा है ,
ज्यों -ज्यों तुझको पढ़ता जाऊँ
अपने को ही खोता पाऊँ
एक पल को मैं डूबूँ जल में
तेरे पन्नों के आंचल में ,
छाई आँखों में एक मधुशाला
अक्षर बनें हैं ,घूँट का प्याला
हर प्याले में स्वाद नया हो
अनुपम एक एहसास मिला हो ,
शब्दों का एक ऐसा अमृत
पाया मैं, अपने को विस्मृत
चेत न मुझको ,तेरी काया
हर पन्नों में रूप समाया ,
चाहूँ एक मैं नींद तो ले लूँ
सुन्दर कुछ तो ख़्वाब सँजों लूँ,
एक हाथ से तूं जो निकले
दूजा पकड़े ,नींद है फिसले,
शब्दों की ये कैसी माया
जिसमें तेरा रूप समाया
हर शब्द में सार छिपा है
जीवन की ये अदभुत छाया .......
"एकलव्य "
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