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शनिवार, 4 फ़रवरी 2017

"बीता बचपन फिर बुलायें" (गीत )


                                 

                                                  "बीता बचपन फिर बुलायें" (गीत )
"प्यारा बचपन"  




आँखों में आये हो बनके
एक नई दुनियां समेटे
रात को आये जो सपने
रेशमी चुनरी लपेटे
दिखते मुझको ख़्वाब सुन्दर
बह चला आँखों का दरिया
गिर गए अरमान सारे,
धुंधली सी छाई है बदली
छुप गयी हर चाँद उजली
मन में सोया बाल जगता
हर घड़ी मुझसे ये कहता
लौट आ बचपन की दुनिया ,
फिर वही झूले पड़े हों
पेड़ की टहनी लगे हो ,
माँ जो लोरी फिर सुनाए
अपने आँचल से लगाए ,
दूध की रोटी खिलाये
बाँह के झूले- झुलाए
परियों की कहानी सुनाये ,
कागजों की कस्ती बनायें
नालें में जिनकों बहायें ,
पेड़ों की छाओं में बैठें
बन कन्हैया मुरली बजायें,
लोगों के माखन चुरायें ,
थाम के बाँह ,नाचे -गायें
फिर वही खुशियाँ मनायें
बीता बचपन फिर बुलायें।।


                      "एकलव्य "
 "मेरी रचनायें मेरे अंदर मचे अंतर्द्वंद का परिणाम हैं"
 

                         



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