वे कह गये थे अक़्स से... ( 'नवगीत' )
वे कह गये थे अक़्स से
परदे हटाना तुम!
मैं जा रहा हूँ, वक़्त से
नज़रे मिलाना तुम !
वे कह गये थे अक़्स से
परदे हटाना तुम!
ख़ाक में, हूँ मिल गया
ज़र्रा हुआ माटी,
मेहनतों के बीज से
फसलें उगाना तुम !
वे कह गये थे अक़्स से
परदे हटाना तुम!
बह गई है शाम
फिर अब न आयेगी,
चिलचिलाती धूप में
दीपक जलाना तुम!
वे कह गये थे अक़्स से
परदे हटाना तुम!
हो नहीं सकता ये रिश्ता
बादलों से नेक,
कुएँ की नालियों से पेटभर
पानी पिलाना तुम!
वे कह गये थे अक़्स से
परदे हटाना तुम!
दीवारें हिल नहीं सकती हैं,
काग़ज़ के पुलिंदों से
सितमग़र वे रहेंगे बाग़ में
मरहम लगाना तुम!
वे कह गये थे अक़्स से
परदे हटाना तुम!
नृत्य करता मोर है
कहते रहेंगे वो,
काम है उनका,
हमेशा का यही हर-रोज़
सर बाँधकर पैग़ाम यह,
सबको बताना तुम!
वे कह गये थे अक़्स से
परदे हटाना तुम!
सरताज़ हैं, सरकार हैं
हर ताज़ पर काबिज़,
हर रोज़ ढलती शामों की
क़ीमत चुकाना तुम!
वे कह गये थे अक़्स से
परदे हटाना तुम!
बोतलों को मुँह में भर
जो लिख रहे कविता,
फूस की रोटी जली
उनको खिलाना तुम!
वे कह गये थे अक़्स से
परदे हटाना तुम!
'जयशंकरों' की भीड़ में ग़ुम
सत्य का साहित्य
'प्रेम' का साहित्य है
उनको बताना तुम!
वे कह गये थे अक़्स से
परदे हटाना तुम!
मैं जा रहा हूँ, वक़्त से
नज़रे मिलाना तुम !
'एकलव्य'
( मेरा यह 'नवगीत' कथासम्राट आदरणीय मुंशी प्रेमचंद जी को समर्पित है। )
9 टिप्पणियां:
प्रिय ध्रुव , साहित्य के पुरोधा मुंशी प्रेमचंद को समर्पित ये मधुर नवगीत बहुत ही शानदार है | एक पुरोधा का अपनी भावी संतति के नाम यही पैगाम हो सकता है कि वे उम्मीद का दामन हरगिज ना छोड़ें | वक्त से नजरे मिलाकर साहस से अडिग खड़े नए रचनाकार उस परम्परा को आगे बढ़ाएंगे , जिसे वे अधूरा छोड़ गये | साहित्य आपसी सौहार्द का दूसरा नाम है नाकि वैमनस्य और कलुषता का | यही मिटाने के लिए जो सतत प्रयासरत रहे वही सच्चा रचनाकार है |बहुत बड़े नहीं छोटे-छोटे प्रयासों से भी ये सत्कर्म संभव है , यही सन्देश देती है ये मधुर रचना , जो भाषा , भाव और शैली की दृष्टि से पूर्ण है | मेरी हार्दिक शुभकामनायें इस सुंदर नवगीत के लिए | यूँ तो हर तरह की काव्य रचना अपने आप में बेहतरीन होती है पर लयबद्धकाव्य हमेशा से काव्यरसिकों की पहली पसंद रहा हैं जिसकी आज बहुत जरूरत है |सस्नेह --
जयशंकरों' की भीड़ में ग़ुम
सत्य का साहित्य
'प्रेम' का साहित्य है
उनको बताना तुम!
वाह!आदरणीय सर हर एक पंक्ति शानदार है और इसमें निहित संदेश बहुत ही महत्वपूर्ण। कथासम्राट को समर्पित आपके इस नवगीत में निहित नए कलमधारीयों के नाम जो भाव और संदेश है वो अपने मुकाम तक पहुँचे यही प्रर्थना है। साहित्य के प्रति आपका निःस्वार्थ प्रेम और चिंता निश्चित ही साहित्य को नए और सुंदर मोड़ पर ले जाएगा।
आपकी इन सार्थक पंक्तियों और आपको सादर प्रणाम 🙏 सुप्रभात।
ख़ाक में, हूँ मिल गया
ज़र्रा हुआ माटी,
मेहनतों के बीज से
फसलें उगाना तुम !
वाह!!!
सहित्यसम्राट मुंशी प्रेमचंद जी को समर्पित यह कृति बहुत ही बेमिसाल है
बहुत ही लाजवाब लयबद्ध उत्कृष्ट सृजन।
बेहतरीन रचना
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(१५ -१२ -२०१९ ) को "जलने लगे अलाव "(चर्चा अंक-३५५०) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
वे कह गये थे अक़्स से
परदे हटाना तुम!
मैं जा रहा हूँ, वक़्त से
नज़रे मिलाना तुम
बहुत सुंदर सार्थक संदेश देती रचना ,सादर नमन आपको
सुन्दर रचना
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार (06-02-2020) को 'बेटियां पथरीले रास्तों की दुर्वा "(चर्चा अंक - 3603) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
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रेणु बाला
हिंदी लिखने वालों के लिए मुंशी प्रेमचंद सिरमौर और आदर्श हैं। वे पढ़े नहीं जाते बल्कि जिये जाते हैं।
आपकी रचना भी उसी आग की चिंगारी है। आशा निराशा का भेद साहित्य ही करता है। आपकी रचना जोरदार है।
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