एन.आर.सी है कि बवाल ! (लघुकथा)
रामखेलावन, पैर पटकता हुआ अपने फूस की मड़ई में प्रवेश करता है और पागलों की तरह घर के कोने में पड़े जंग लगे संदूक को खोलकर जल्दी-जल्दी उसमें पड़े कपड़ों और पुराने सामानों को इधर-उधर मिट्टी के फ़र्श पर फेंकते हुए चींख़ता है,
"अरे ओ नटिया की अम्मा!"
"मर गई का!"
"कहाँ है ?"
"ज़ल्दी इधर आ!"
फूलन देवी अपनी साड़ी के पल्लू को संभालती हुई रसोईं से अपने पति रामखेलावन की ओर दौड़ती हुई,
"का हुआ ?"
"काहे आसमान फाड़ रहे हो!"
"अउर ई का!"
"ई का कर रहे हो ?"
"भाँग-वाँग खा लिये हो का!"
"सारा सामान ज़मीन पर काहे फेंक रहे हो ?"
"का चाहिये तोका ?"
"हमसे कहते, हम निकाल देते।"
फूलन, रामखेलावन पर चिल्लाती हुई अपनी साड़ी के पल्लू को आटे लगे हाथों से ठीक करती है,
"का हुआ ?"
"इतना काहे सुरियाये हो!"
"अरे गज़ब हो गवा!"
"ऊ ससुरा एन.आर.सी आवे वाला है!"
कहता हुआ रामखेलावन अपने कंधे पर रखे मैले गमछे से अपने माथे का पसीना पौंछता है।
"अरे आज मुखिया जी पंचायत बुलाये रहे।"
"वे कह रहे थे कि एन.आर.सी ससुर आ धमका है!"
"सबही गाँव वाले अपना-अपना पहचान-पत्र और कउनो ज़मीन के काग़ज़ तैयार रखें!"
"नाही तो गाँव से उसका हुक़्क़ा-पानी सबही बंद कर दिया जायेगा और गाँव से बाहर निकाल दिया जायेगा!"
"अरे, कइसे निकाल देंगे हमको!"
"हमरे बाप-दादा यहीं रहे हमेशा और हमें कइसे निकाल देंगे!"
"का कउनो हलुआ है का!"
"अउर सभही का यही रहेंगे ?"
कहती हुई फूलन अपना विरोध दर्ज़ कराती है।
मुखिया जी कह रहे थे कि-
"केवल ज़मींदार साहेब!"
"लाला जी!"
"अउरो ऊ पुरोहित जी!"
"ई गाँव में रहेंगे!"
कहते हुए रामखेलावन पश्चातापभरी आँखों से फूलन को देखता रहा।
"अरे, ई का!"
"काहे ऊ काहे रहेंगे ?"
"उनही के बाप-दादा खाली चमेली का तेल अपने उजड़े चमन में लगाये रहे का जो सारे गाँव में अब तक महक रहा है!"
रामखेलावन फूलन को समझाता हुआ-
"अरे नाही!"
"ई बात नहीं है!"
"असल में उनके बाप-दादा पढ़े-लिखे रहे, सो उनके पूरे ख़ानदान का नाम गाँव के पंचायत-भवन के रजिस्टर में मौज़ूद रहा!"
"हम सब ठहरे अँगूठा-टेक!"
"अउर का!"
"तो का मतबल!"
"हमार नटिया भी गाँव में न रहेगी!"
फूलन के इस मासूम से सवाल पर रामखेलावन सजल आँखों से उसे एक टक देखता रह गया!
7 टिप्पणियां:
असम का एनआरसी वहाँ की राज्य सरकार ने अस्वीकार कर दिया है. अब देशभर में एनआरसी की योजना अभी पाइपलाइन में है. देश की ग़रीब जनता की पीड़ा को बड़ी शिद्दत से व्यक्त करते हुए सामाजिक ढाँचे पर तीखा व्यंग्य भी किया गया.
आदरणीया अनीता सैनी जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ! हो सकता है कल मैं मंच पर अनुपस्थित रहूँ अतः मुझे क्षमा करिएगा और मेरी शुभकामनाएं मैं यहीं से प्रेषित कर रहा हूँ। सादर
प्रिय ध्रुव, अब लोकतन्त्र में ये दिन भी आ सकते हैं?? यकींन नहीं होता 😓😓
सटीक
बहुत सुंदर और सटीक प्रस्तुति।
सटीक अभिव्यक्ति ।
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