''अवशेष''
सम्भालो नित् नये आवेग
रखकर रक़्त में 'संवेग'
सम्मुख देखकर 'पर्वत'
बदल ना ! बाँवरे फ़ितरत
अभी तो दूर है जाना
तुझे है लक्ष्य को पाना
उड़ा दे धूल ओ ! पगले
क़िस्मत है छिपी तेरी
गिरा दे ! आँसू की 'गंगा'
धुल दे,पाप तूँ सारे
मैं तो आऊँगा ! अक़्सर
तय है 'गमन' मेरा
कल 'मैं' सा रहूँगा तुझमे
क्षण में टूट जाऊँगा
पकड़ना चाहेगा मुझको
पकड़ न आऊँगा तुझसे
मुँह के बल गिरेगा तूँ
पश्चाताप है कहके
धूमिल सी कुटिल वाणी
सुनेगी ना चिता अग्नि
कहेंगे 'भस्म' से अवशेष
बुझती तेरी कहानी
( अनवरत जारी है ! सत्य की खोज )
"एकलव्य"
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