"पुनरावृत्ति"
'सोज़े वतन' अब बताने हम चले
'लेखनी' का मूल क्या ?
तुझको जताने
हम चले !
'सोज़े वतन', अब बताने हम चले .....
भौंकती है भूख नंगी
मरने लगे फुटपाथ पर
नाचती निर्वस्त्र 'द्रौपदी'
पांडवों की आड़ में
हाथ में चक्र है 'सुदर्शन'
लज्जा बचाने हम चले
'सोज़े वतन', अब बताने हम चले.......
धूप में तपते हुए
वो हाँकता है प्रेम से
पैरों में 'खड़ाऊँ' नहीं
वो काँपता है,रातों में
सर्दी की ठंडी रात्रि में
वो तापता है आग में
आग तो उदर में लगी
कुछ क्षण,बुझाने हम चले
'सोज़े वतन', अब बताने हम चले.......
सपनें विखंडित हो चले
मौसमों की मार से
कुछ कर्ज़ उसने जो लिए
गिरवी कर गहने ,उधार के
सड़कों पर नीलाम हुआ
'साहूकार' के मार से
सस्ती हुई है आबरू
उन कर्ज़ के दुकानों पे
खरीदने को आबरू
बे-आबरू से बाज़ार में
कौड़ियों से भरकर जेबें
उनको दिखाने हम चले
'सोज़े वतन', अब बताने हम चले.......
( मैं फिर उगाऊँगा ! सपनें नये )
"एकलव्य"
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