स्वतंत्र भारत हो गया
केवल स्मृतियाँ बाक़ी
महान सागर,सूख चला
मृत हुईं सीपियाँ बाक़ी।
बन गईं खाईयाँ हृदय में
कलुषित द्वेष बाक़ी
ढोंगी धर्म पल्लवित
दुर्बल ! सत्य बाक़ी।
देशप्रेम भूला,
सम्प्रदाय बाक़ी
रचनायें हों चली धूमिल
बनकर दिवास्वप्न सा,
गहराता विध्वंस बाक़ी।
करता है मृत सा मानव
झूठा प्रदर्शन धर्म का !
कलंकित किया,इंसान धर्म
इंसानियत सा स्वप्न बाक़ी।
क्रांतिकारी कहलाते थे,देश पे मरने वाले
मरने वाले कहलाते,देशद्रोही आज
प्राप्त हुई आज़ादी का
बस यही,एक मर्म बाक़ी।
सत्य से ईर्ष्या करने लगे
सत्य बोलने वाले,
वर्तमान में आत्मविस्मृत सा
यही एक तथ्य बाक़ी।
बाक़ी तो बहुत कुछ है,लिखने को
लेखनी में एक आख़िरी बूँद
रह गई स्याही की,
अंदर उद्वेलित भावनायें बाक़ी
कहने को,
उठो !
जागो !
खड़े हो!
चल पड़ो !
मंज़िल दूर नहीं,
क्षितिज़ के पार है जाना
केवल अंतिम,गंतव्य बाक़ी।
"एकलव्य"
अंतिम गंतव्य,बाक़ी |
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