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शुक्रवार, 17 मार्च 2017

"जाति-धर्म का ध्वज" 'लेख'


                                             "जाति-धर्म का ध्वज" 'लेख'   


सर्वप्रथम मैं कहना चाहूँगा,हम मात्र इंसान हैं,न कि किसी विशेष धर्म-जाति के परिचायक।
धर्म-जाति का ध्वज वही व्यक्ति ऊँचा करता है जिसका कुछ स्वयं का स्वार्थ अन्तर्निहित हो,यदि आप विज्ञान और प्रौद्योगिकी की बात करतें हैं,तो ये उन स्वार्थपरक जन के लिए एक टेढ़ी खीर हो जाती है क्योंकि विज्ञान तर्क एवं स्पष्ठ प्रमाणों का द्योत्तक है,जो धर्म-जाति के आधार पर उत्पन्न तर्कों को निराधार सिद्ध करता है। 

मानव का एक सारभौमिक स्वभाव है, "सरलता की ओर अग्रसर होना बिना किसी कठनाई के" तो क्यों जटिलता से परिपूर्ण बातें करे ? 
"धर्म एक सीधा व सरल मार्ग है और सरलता का मार्ग प्रारम्भ में उचित प्रतीत होतें हैं किन्तु इसके दूरगामी विध्वंसक परिणाम तय हैं।" लोगों के ह्रदय में व्याप्त जाति-धर्म के नाम पर विद्वेष ,परिणामस्वरुप विनाश एवं गहरे शोक का प्रारम्भ !
संभव है विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के दौर में हम कितनी भी सफलतायें अर्जित कर लें किन्तु विचारों से आज भी हम धर्म एवं जाति की दासता से मुक्त नहीं हो पायें हैं। 
"अतः हमें तर्क आधारित तथ्यों पर अमल करने की आवश्यकता है।" 


                                "एकलव्य"
 "मेरी रचनायें मेरे अंदर मचे अंतर्द्वंद का परिणाम



छाया चित्र स्रोत :  https://pixabay.com/

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