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शुक्रवार, 3 मार्च 2017

"हिंदी" आज स्वयं में ही अंतर्नाद कर रही है

 "हिंदी"   


                    "हिंदी" आज स्वयं में ही अंतर्नाद कर रही है      


हम भारतीय हैं ,भारतवासी हैं ,हमें अपने भारतीय होने पर गर्व है है ,
परंतु कभी हमनें  यह विचार किया है , कि भारतीय केवल क्षणमात्र कह देने से 
कोई भी राष्ट्र यह स्वीकार नहीं कर लेता ,कि हम अपने देश के एक सच्चे नागरिक हैं। 
किसी भी राष्ट्र का प्रभुत्व ,यह निर्दिष्ट करता है,कि उसका प्रभाव केवल उसके नागरिक होने से नहीं ,
अपितु उसकी परम्परा ,भाषाशैली एवं संस्कृति का प्रभाव कहाँ तक ,कितनी सीमा तक विस्तारित है। 
भारतेंदु के ये वाक्य हमने बचपन में पढ़ा था "किसी राष्ट्र की भाषा ही ,उस राष्ट्र के उन्नति का मूल है"
परंतु आज स्वयं ही हम इसे काटने पर आमादा हैं। 
यदि आप सामाजिक अनुप्रेषण की बात करें ,तो गौर कर सकते हैं ,पाश्चात्य राष्ट्र अपनी मातृभाषा का उपयोग 
बड़ी ही राष्ट्रभक्ति के साथ कर रहें हैं ,रही-सही कसर हम भारतवासी पूर्ण कर रहें हैं,मैं मानता हूँ भाषाओं की कोई सीमा नही होती, यह विचारों के आदान-प्रदान का एक माध्यम है, तो वही स्नेह हम अपनी मातृभाषा से भी दिखाएं अन्य भाषाओं के साथ इसे मुख्य धारा में जोड़कर विचारों का आदान-प्रदान करें।  मेरी लेखनी में  यदि कोई मिथ्या हो ,तो आप मेरे वक्तव्य से असहमत हो सकते हैं। 
"क्योंकि हमारा राष्ट्र एक लोकतांत्रिक राष्ट्र है ,यही हमारी शक्ति का द्योत्तक है"
चंद वाक्य ,जो वास्तव  में मेरे मौलिक विचार हैं ,आपको सम्प्रेषित कर रहा हूँ ,जिसका उत्तरदायित्व भी 
स्वीकार करता हूँ।  
"हिंदी" आज स्वयं में ही अंतर्नाद कर रही है ,अपनों की अनदेखी झेल रही है क्यों ?ये देखा जा रहा है लोग अपनी ही मातृभाषा को लिखने और पढ़ने में लज्जा का अनुभव कर रहें हैं, जबकि किसी देश की भाषा ही उसकी उन्नति का मूल है।"

               "एकलव्य" 
"एकलव्य की प्यारी रचनायें " एक ह्रदयस्पर्शी  हिंदी कविताओं का संग्रह


    

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