"सूनें वीरानों में कभी-कभी"
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"मेरी रचनायें,मेरे अंदर मचे,अंतर्द्वंद का परिणाम हैं" |
रोते-रोते छलक पड़तीं हैं
कुछ बूँदें
कलम से होकर
मेरी डायरी पे,
अनजाने में ही सही
बन जाते हैं, कुछ नज़्म
मेरी ज़िंदगी के
कभी-कभी,
लिखना चाहता नहीं
अपने उन अनछुए पहलूं को
कमबख़्त ये क़लम चलने लगती है
अपने आप यूँ ही
कोरे कागज़ क़ो चुमने
कभी-कभी,
बार-बार चाय की चुस्कियाँ लेता हूँ
दिल क़ो थोड़ा बहलाने क़ो
चाय में चीनी मिलाना भूल जाता हूँ
कुछ सोचते हुए मन में
कभी-कभी,
दूर रखी डायरी,जैसे कुछ बोलती हो
मुझसे तन्हाइयों में
उठा लेता हूँ जिसे मैं,अपना मुक़्क़मल जहाँ मानकर
कुछ सोचकर,कुछ लिखता हूँ
अभी-अभी,
तैरतीं हैं,लाख़ों ख़्वाहिशें
सूखे पत्तों की तरह मन में
यादों की क़शिश इतनी तेज़ हैं
जहन में,
चिपक जातीं हैं,मेरी डायरी क़े पन्नों में
इतनी पकड़ से
जो तैरते थे बनकर ख़्वाब, ख़्यालों में
कभी-कभी,
रोक दूँ,इस क़लम की रफ़्तार
मन करता है,कभी-कभी,
स्याह तो ख़त्म हो जायेगी
इस ज़िंदगी की एक दिन
रूह का क्या करूँ
अल्लाह से मुख़ातिब होती है जो
कभी-कभी,
जो स्याही का ज़रिया है
भरता रहेगा, ज़िस्म से
अलविदा होने के बाद भी
सूनें वीरानों में
कभी-कभी ...... कभी-कभी ......
"एकलव्य"
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"एकलव्य की प्यारी रचनायें" एक ह्रदयस्पर्शी हिंदी कविताओं का संग्रह |
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