"मैं बूंदें ,बन जाऊँ"
मैं बूंदें बन जाऊँ
गिर जाऊँ बनकर ,नवल चेतना
मानवमात्र की ,एक प्रेरणा
स्मरण दिलाऊँ ,उनकी शक्ति
शक्तिहीन कहते हैं स्वयं को
मैं बूंदें ,बन जाऊँ .........
प्रेषित करूँ, प्रेम संचार
करूँ बन , अमृत प्रहार
बहाऊँ प्रकाश की,एक बयार
हृदय से होकर ,ह्रदय के पार।
मैं बूंदें ,बन जाऊँ .......
प्रवाह हो मेरा ,बिना भेद
जाति -धर्म से पूर्ण स्वतंत्र
लेकर दौड़ू ,एक धर्म
मिला हो ,जिसमें देशप्रेम।
मैं बूंदें ,बन जाऊँ .......
सींचूँ धरा को, निर्मल जल से
देशभावना के करतल से
उगे जिसमें ,सौहार्द की फसलें
काटें उनको जन ,प्रेम से मिलके।
मैं बूंदें ,बन जाऊँ .........
प्रेरणा की लवण मिली हो
हो समायोजित ,देश की खुश्बू
जन -जन में संचार करूँ जो
देशभक्ति से ,ओत -प्रोत हो।
मैं बूंदें ,बन जाऊँ .........
"एकलव्य "
6 टिप्पणियां:
Ati sunder !!
Keep it up !!
tx maams
Bahut badiya
Bahut badiya
Wonderful theme and outstanding choice of words. Awesome
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