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मंगलवार, 23 मई 2017

''विजय पताका''

वे शहद 
चटातें हैं !
तुमको 
मैं नमक 
लगाता हूँ !
तुमको 


वे स्वप्न 

दिखाते हैं !
तुमको 
मैं झलक 
दिखाता हूँ !
तुमको 


वे रंग लगातें हैं !

तुमको 
मैं रक्त 
दिखाता हूँ !
तुमको 


गर्दन पर चाकू 

मलते हैं ! वे 
मैं बलि 
चढ़ाता हूँ !
तुमको 


झांसे में रखते ! वे 

प्रतिक्षण 
मैं सत्य 
दिखाता हूँ !
तुमको 


आह्लादित करते ! वे

पल-पल 
निर्लज्ज बनाता हूँ !
तुमको 


विस्मृत कराते !

शक्ति तेरी 
मैं स्मरण  कराता हूँ !
तुमको 


वे मौन बताते !

सभ्य ज्ञान 
उदण्ड बनाता हूँ !
तुमको 


तुझमें रचते ! वे 

नीति कूट 
मैं रण में लाता हूँ !
तुमको 


शस्त्र त्याग ! तूँ 

हे ! अर्जुन 
उपदेश बताते ! वे 
तुमको 
करता हूँ ! मैं 
शंखनाद 
महाभारत रण लाता 
तुमको 


उठ जा ! हे 

तूँ,मानव पुत्र 
रथ में बैठा ! मैं 
तेरे साथ 


तूँ देख ! अनोखा 

लक्ष्य अडिग 
भेद उसे तूँ ! कर 
प्रहार 


उत्पन्न करेंगे ! विघ्न बड़े 

शत्रु सदैव ही 
शत-शत बार 


नाश करेगा ! स्वयं 

शौर्य से 
कूट रचित 
शत्रु जंजाल 


फहरायेगा ! 'विजय पताका' 

राष्ट्र नहीं 
ब्रह्माण्ड ! विशाल 


अविस्मरणीय होगी 

कीर्ति तेरी 
पाँव पड़ेंगे 
धरा ! महान 



"एकलव्य"

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