शनिवार, 26 मई 2018

ख़त्म करो !


              
               ख़त्म करो !


हाँ सखी ! मैंने तन बेचा है। 
दिल्ली की उन सड़कों पर 
अपना कलुषित मन बेचा है। 

हाँ सखी ! मैंने तन बेचा है।....... 

गुड़-गुड़ करते इस उदरपूर्ति को,
ठिठुरन-सी सर्दी रातों में 
मिथ्या चादर-सा स्वप्न लिए 
मोटों से पानी खींचा है। 

 हाँ सखी ! मैंने तन बेचा है। 
 दिल्ली की उन सड़कों पर 
अपना कलुषित मन बेचा है।

हाँ सखी ! मैंने तन बेचा है।.......  

बिन ब्याहे श्रृंगार किया 
सारे सपनों को पार किया 
विक्राल नहीं थे ! क्षणिक स्वप्न 
बस दो जून की रोटी को,
उनको आडम्बर बेचा है। 

 हाँ सखी ! मैंने तन बेचा है। 
दिल्ली की उन सड़कों पर 
अपना कलुषित मन बेचा है। 

हाँ सखी ! मैंने तन बेचा है।....... 

राजधानी न्याय की 
नई दिल्ली !
कहते-कहते मैं रोती हूँ।  
सीवर का पानी मुँह भरके 
तन को ठंडक मैं देती हूँ। 
अन्याय की चौखट पर मैंने, 
यूँ न्याय को बिकते देखा है। 

 हाँ सखी ! मैंने तन बेचा है। 
दिल्ली की उन सड़कों पर 
अपना कलुषित मन बेचा है। 

हाँ सखी ! मैंने तन बेचा है।....... 

नारी-शक्ति के ज़ुमले दिए 
सरकारें आनी-जानी हैं।  
कल वे कुर्सी पर बैठे थे,  
आज कोई यूँ ऐंठा है। 
न्याय की लाख गुहार लिए 
मैंने परिवर्तन बेचा है। 

हाँ सखी ! मैंने तन बेचा है। 
दिल्ली की उन सड़कों पर 
अपना कलुषित मन बेचा है। 

हाँ सखी ! मैंने तन बेचा है।....... 

धर्मों की, क्या मैं बात करूँ !
उनके ईश्वर लाचार हुए, 
पर-निज के मिथ्या जांतें में 
खुद को पिसते 
बरबस ही देखा है। 

हाँ सखी ! मैंने तन बेचा है। 
दिल्ली की उन सड़कों पर 
अपना कलुषित मन बेचा है। 

हाँ सखी ! मैंने तन बेचा है।....... 

माँग रही हूँ .........
न्याय आज भी,
व्यंग भरी उन नज़रों से 
करके प्रदर्शित, प्रत्यक्ष स्वयं को 
उनको लड़ते देखा है। 

 हाँ सखी ! मैंने तन बेचा है। 
दिल्ली की उन सड़कों पर 
अपना कलुषित मन बेचा है। 

हाँ सखी ! मैंने तन बेचा है।....... 

बहुत हुईं अन्याय की बातें 
ठंडी-सी,अब न्याय की बातें 
स्वप्न सही,परन्तु,लेकिन ...... 
स्वयं को उड़ते देखा है....... !

हाँ सखी ! मैंने तन बेचा है। 
दिल्ली की उन सड़कों पर 
अपना कलुषित मन बेचा है। 

हाँ सखी ! मैंने तन बेचा है।....... 

(प्रस्तुत 'रचना 'मेरे तीन वर्ष विद्यार्थी के रूप में दिल्ली प्रवास के दौरान हुए सत्य अनुभवों पर आधारित है। )
                                             'एकलव्य'
                                                         



     छायाचित्र स्रोत : साभार गूगल 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें