'शोषित'
ओ बापू ! बड़ी प्यास लगी है
पेट में पहले आग लगी है
थोड़ा पानी पी लूँ क्या !
क्षणभर जीवन जी लूँ क्या !
धैर्य रखो ! थोड़ा पीयूँगा
संभल-संभल भर हाथ धरूँगा
दे दो आज्ञा रे ! रे ! बापू
सौ किरिया, एक बार जीयूँगा
ना ! ना ! 'बुधिया' कर नादानी
पाप लगेगा पिया जो पानी
'ब्रह्मज्ञान' ना तुझको 'मूरख'
करता काहे जान की नौबत
सुन 'बुधिया' ! कोई देख ले नाला
ना मंदिर ना कोई 'शिवाला'
देख नहर में शव जो पड़ा है
नहीं कोई 'ज़ल्लाद' खड़ा है
डाल दे अपने कलुषित मुख को
पी ले नीर ,जो 'आत्मतृप्ति' हो
काहे ऊँची बात तूँ कहता
धर्म-भेद के चक्कर पड़ता
जन्म लिया है मेरे घर में
जन्मजात अधिकार गंवाकर
आधुनिकता का भाव न भाए
सारभौम 'शोषित' कहलाये। ..
( मानवता की प्रतीक्षा में )
"एकलव्य"
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