''अविराम लेखनी''
लिखता जा रे !
तूँ है लेखक
रिकार्ड तोड़ रचनाओं की
गलत वही है
तूँ जो सही है
घोंट गला !
आलोचनाओं की
पुष्प प्रदत्त कर दे रे ! उनको
दिन में जो कई बार लिखें
लात मार दे ! कसकर
उनको
जीवन में एक बार
लिखें
लिख -लिख पगले
भर -भर स्याही
जब जी चाहे छाती पे
लगा -लगा कर धूम मचा दे
सौ टिप्पणियाँ
'राही' की
सोच न उनको, जो हैं लिखते
सत्य काव्य सा अनुभव को
वो हैं मूरख, सोचने वाले
करते बातें मानव की
लिखता जा अविराम लेखनी
लिखने का तूँ आदी है
कर दे तूँ सूर्यास्त साहित्य का
तुझमें हिम्मत बाक़ी है !
आज लिख रहा तेरी महिमा
अनपढ़ सा मैं सोचने वाला
वाह रे ! फ़कीर जो तूने किया
साहित्य समाज का सच्चा रखवाला
( दिन में सौ रचनायें लिखने वाले सम्माननीय लेखकों को "एकलव्य" का दंडवत नमन। )
"एकलव्य"
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