वे शहद
चटातें हैं !
तुमको
मैं नमक
लगाता हूँ !
तुमको
वे स्वप्न
दिखाते हैं !
तुमको
मैं झलक
दिखाता हूँ !
तुमको
वे रंग लगातें हैं !
तुमको
मैं रक्त
दिखाता हूँ !
तुमको
गर्दन पर चाकू
मलते हैं ! वे
मैं बलि
चढ़ाता हूँ !
तुमको
झांसे में रखते ! वे
प्रतिक्षण
मैं सत्य
दिखाता हूँ !
तुमको
आह्लादित करते ! वे
पल-पल
निर्लज्ज बनाता हूँ !
तुमको
विस्मृत कराते !
शक्ति तेरी
मैं स्मरण कराता हूँ !
तुमको
वे मौन बताते !
सभ्य ज्ञान
उदण्ड बनाता हूँ !
तुमको
तुझमें रचते ! वे
नीति कूट
मैं रण में लाता हूँ !
तुमको
शस्त्र त्याग ! तूँ
हे ! अर्जुन
उपदेश बताते ! वे
तुमको
करता हूँ ! मैं
शंखनाद
महाभारत रण लाता
तुमको
उठ जा ! हे
तूँ,मानव पुत्र
रथ में बैठा ! मैं
तेरे साथ
तूँ देख ! अनोखा
लक्ष्य अडिग
भेद उसे तूँ ! कर
प्रहार
उत्पन्न करेंगे ! विघ्न बड़े
शत्रु सदैव ही
शत-शत बार
नाश करेगा ! स्वयं
शौर्य से
कूट रचित
शत्रु जंजाल
फहरायेगा ! 'विजय पताका'
राष्ट्र नहीं
ब्रह्माण्ड ! विशाल
अविस्मरणीय होगी
कीर्ति तेरी
पाँव पड़ेंगे
धरा ! महान
"एकलव्य"
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