रविवार, 5 मार्च 2017

"माँ के इस रुसवाई का"(बदलते दौर में माँ-बेटी का रिश्ता)


                 "माँ के इस रुसवाई का"(बदलते दौर में माँ-बेटी का रिश्ता)  
बदलते दौर में माँ-बेटी का रिश्ता 



रातों को मैं जागा करती 
कुछ पल तुझे सुलाने को 
पेट में आग लगी है मे्रे 
रोटी तुझे खिलाने को,

वर्षों रात जो सोई नहीं मैं 
कुछ पल तुझे हँसाने को 
तरसी हैं जो आँखें मेरी 
एक पल नींद ,न आने को,

सोचा था,तूं होगी सयानी 
कुछ पल मुझे,हँसाने को 
देगी गोद तूं ,मुझको अपनी
माथे पर सहलाने को ,

रात थी काली,बचपन तेरी 
बड़ी हो गई,हुआ सवेरा 
हरदम मैं यह सोचा करती 
भागेगा अब  दूर अँधेरा,

हर पल मुझको डाँटा करती 
छोटी सी उन बातों पे 
चलना सिखाया अंगुली पकड़कर 
कोमल से एहसासों से,

कल तक तुझको सिखलाया था 
बातें कैसे करते हैं 
तूँ तो अब, मुझको बतलाती 
बातें ऐसे करते हैं,

अब तो लगता,समझ न मुझको 
दुनियां की सच्चाई का 
सच-झूठ का फ़र्क न जाने 
माँ के इस,रुसवाई का .........


                "एकलव्य"   
"एकलव्य की प्यारी रचनायें " एक ह्रदयस्पर्शी  हिंदी कविताओं का संग्रह
   



   

   

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