श्री कृष्ण "लीला" |
मन श्याम रंग विचार में तज, भूलत है सबको अभी
कुछ नींद में सपनें सजत ,चित्त रोअत है अभीभूत बन।
धरे हाँथ सुंदर बाँसुरी ,कसे केश अपने मयूर पंख
जग कहत जिनको त्रिकालदर्शन,हो प्रतीत ह्रदय निकट।
मन श्याम रंग विचार में तज, भूलत है सबको अभी
कुछ नींद में सपनें सजत ,चित्त रोअत है अभीभूत बन।
बन बिम्ब मेरी वो खड़ा ,पत्थर की प्रतिमा में कहीं
है झाँकता मन में मेरे ,बन ह्रदय की धड़कन सा मे्रे ।
ब्रहमांड मुख में समात है ,पर चरण धरती पर धरत
जग का तूं पालनहार ,पर पालत माँ है, यशोदा बन।
मन श्याम रंग विचार में तज, भूलत है सबको अभी
कुछ नींद में सपनें सजत ,चित्त रोअत है अभीभूत बन।
छुप-छुप के माटी खात है ,जो धरती तेरे तन बसी
लीलायें अदभुत करता है ,जो मन को शीतल हैं लगत।
दिनभर क्रीडायें करत है,बन लाल गोकुल का मे्रे
माखन चुराये घर में जाकर ,गोपीयों के साँवरे।
यशोदा है झिड़कत हर बखत ,नट्खट बड़ा है साँवरे
लीला दिखाए हर घड़ी ,जानत यशोदा बाँवरे।
मन श्याम रंग विचार में तज, भूलत है सबको अभी
कुछ नींद में सपनें सजत ,चित्त रोअत है अभीभूत बन।
भर आँख आवत याद कर ,ममता यशोदा के तले
रज से भरे मैदान सब ,कालिंदी तट से थे लगे।
मन श्याम रंग विचार में तज भूलत है ,सबको अभी
कुछ नींद में सपनें सजत ,चित्त रोअत है अभीभूत बन। ..........
"एकलव्य"
श्री कृष्ण "लीला" |
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