"अधूरी प्यास"
दिल में तलब है ,आज़ फिर
कुछ कर दिखाऊँ ,फिर वही ,
फ़िर वही ,हूँ सोचता
कुछ अनकही बातें नईं ,
हूँ जानता मैं भूत को
भविष्य जो ,अपना नहीं
खंगालता मैं कंकाल को
मिल जाये कुछ ,आशा यहीं ,
चलता हूँ अक्सर रोज़ मैं
पा जाऊँ मैं ,राहें कहीं ,
पाँवों में, छालें पड़ रहे
पथरीली राहें देखकर
आँखों में कंकड़ गड रहे
चलने की इन पर सोचकर ,
अक़्सर जहन में तैरतीं
कुछ कर दिखाने की मग़र
पीछे क़दम हैं लौटते
लहरों को उठता देखकर ,
कुछ पल ठहरता मैं ज़रा
जानें क्यूँ ! यह सोचकर
जायें न ढह ! अस्तित्व मेरा
लहरों से यूँ ,रेत पर ,
अम्बर है नीला मन में मग़र
है रात काली ,स्याह सी
दिखती नहीं मुझको कहीं
क़ोई पुरानी ,राह भी। ........
"एकलव्य"
छाया चित्र स्रोत :https://pixabay.com
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