"रंगों से दुनिया बनती है "
लोग कहते हैं ,रंगों से दुनिया बनती है
लाल ,पीले ,हरे ,नीले ,सपनों की एक बगिया सजती है,
कुछ के पास ग़ुलाबी सपने
कुछ के पास हैं काले
पर कोई लाल में मस्त है
कुछ हरियाली के रखवाले ,
ग़ुलाबी रंग की चाह में कुछ हैं ,लाल रंग बहाते
हरे रंग को स्याह बनाते ,जो हैं दिल के काले
हरे रंग की बाट है जोहे आदम की एक जाति
जिसको हर पल स्याह बनाये ,इच्छाओं की आँधी ,
ख़ुद को कहता मानव रंग हूँ
ले आया मैं रंगों का मेला
चुन लो तुमको जो पसंद हो
खुली है झोली ,लगा है रेला ,
कहे कभी न अपने मुँह से
रहे हमेशा अपनी धुन में
बेचे जाये ,जो रंग झूठ है
दुनियां के बाज़ारों में
हर शख़्स जो जरूरतमंद है
खरीदे औने -पौने दामों में ,
पुड़िया खोले ,रंग हो फीका
केवल आटा ,रंग सरीख़ा
ख़ुशियाँ दिखती कहीं न इसको
मन में पश्चाताप भरी हो ,
उम्मीदों के पुल वो टूटे ,जिस पग होकर मुझको जाना
पास बची ना नौका टूटी ,हो सवार उस तट को पाना ,
"एकलव्य "
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