"एक बूंद हूँ मैं"
बादल से गिरती एक बूंद हूँ मैं
माटी में मिला ही सही
उस पाक -ए -ख़ुदा की रहनुमाई का
एक अमिट वजूद हूँ मैं
एक बूंद हूँ मैं .......
कुछ भी नहीं ,मेरे अस्तित्व की परछाईं का
उस ख़ुदा के नेकी का ,सुबूत हूँ मैं
एक बूंद हूँ मैं .......
टूटता हूँ ऊँचाइयों से ,जुड़ता हूँ गहराईयों से
टूटना -जुड़ना मेरी तो एक फ़ितरत है
बस अपनी ही धुन का एक जुनून हूँ मैं
एक बूंद हूँ मैं .......
मिलता हूँ गहराईयों से ,सागर एक क़ायनात बनती है
भले ही मैं कुछ भी नहीं, क़स्तियों की एक बस्ती सजती है
अकेले ही मैं कुछ भी नहीं
जुड़ते हैं हम करोड़ों में
शैलाबों की एक तारीख़ ,लिखता हूँ मैं
एक बूंद हूँ मैं .......
बस डुबोनें को ही नही
धरती पर आदमज़ात की
एक धुंधली सी तस्वीर हूँ मैं
एक बूंद हूँ मैं. .......
ना आंको मेरे अंदर छुपे ,भावनाओं के तूफ़ान को
रिस गया तो ,ख़त्म कर दूँगा पूरी क़ायनात एक पल में
बुरा ही सही ,अल्लाह की ख़्वाहिशों का एक फ़ितूर हूँ मैं
एक बूंद हूँ मैं .......
"एकलव्य "
प्रकाशित :वीथिका (दैनिक जागरण )
Nice Thoughts and Ghazal.
जवाब देंहटाएंMy First Success
Stress Management Essay