बुधवार, 4 जनवरी 2017

"तारे ज़मीन पर लाऊंगी"

                                                                       
 "तारे ज़मीन  पर लाऊंगी"

                         
जब पैदा हुई ,माँ बड़ी खुश थी
                    पिता जी रुष्ठ थे,
                     मौसम  हसीन था।
                    दादी गमगीन थी
                    दादा मस्त थे।
 
पड़ोसी बोले, लक्ष्मी आई है
किस्मत साथ लाई है,
दरवाज़े खोल दो
कोई  हसीन सा ख़्वाब लाई है ,  

बढ़ती मैं थी ,घटता प्यार था
हँसती मैं थी ,दुःखी संसार था।
पिता के कंधो की बोझ थी
बस यही कहानी हर रोज थी।

मैं कहती पिताजी ,मैं पढना चाहती हूँ
मैं लड़की ही सही ,आगे बढ़ना चाहती हूँ।


एक ख्वाब संजोए थे
आसमान के तारे गिनकर।
मन में सब्ज़बाग लगाए थे
अपने आंसुओं  से सींचकर।

 मन में इच्छाएँ दबीं थीं
 भीतर कुछ आग लगी थी,
मैं कहती कुछ कर दिखाऊँगी
चाँद ना ही सही ,तारे ज़मीन पर लाऊंगी।


   
                        "एकलव्य "


"एकलव्य की प्यारी रचनायें" एक ह्रदयस्पर्शी हिंदी कविताओं एवं विचारों का संग्रह    
प्रकाशित :वीथिका

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