रविवार, 15 जनवरी 2017

"पिता"


                                                                      "पिता"


बचपन में अंगुलियां पकड़कर ,चलना सिखाया
क्या बुरा ,क्या भला मुझको बतलाया।

रोता हुआ जब कभी, उनके पास आया
हँसते हुए उन्होंने मुझको ,गोद में उठाया।

उठाते हुए लाड़ -प्यार से मनाया
कहते हुए, मुझको समझाया।

बेटा तू, तो आसमान का तारा है
हँस के देख ,ये जग तुम्हारा है।

एक दिन ,दुनिया में नाम करेगा
तू चमकता हुआ सूरज ,मेरी पहचान बनेगा।

मैं क्षण भर ,प्रसन्न हो जाया करता था
ख़ुद पे मैं ,इठलाया करता था ,
पिताजी -पिताजी कहकर
चिल्लाया करता था।

ग़म की आंधियां रोक दे ,आज वो शख़्स नहीं
मुश्किलों में संभलना सीखा दे ,आज वो वक़्त नहीं

"आज लिपटी कागजों में ,धुंधली वो परछाइयाँ ,
साफ़ करता हूँ मैं पल -पल ,अमिट दिखती स्याहियाँ ,
कुछ गिरें थे बोतलों से ,बाक़ी आँखों में सजे ,
अच्छा होता गिर ही जाते ,जो बचे पलकों तले। (सभी  पूज्य पिताओं को समर्पित )


     "एकलव्य"        
"एकलव्य की प्यारी रचनायें" एक ह्रदयस्पर्शी  हिंदी कविताओं का संग्रह 
                 
                                                               

3 टिप्‍पणियां: