" एक आश बाकी है "
जाड़ो की वो रात भूली नही मुझे
अँगीठी के सामने बैठा -बैठा सोचा करता था
अपने अध् -पके बाल नोचा करता था।
पेट में लगी आग ,मन में विध्वंश मचाती थी
सूखी हुई फसले ,शीतल तन को जलाती थी।
आज फिर वही खेतों में
एक जोड़ी वाले बैल ,हांका करता हूँ।
आज फिर वही सूखी ज़मीन पर
स्वर्ण उगाया करता हूँ।
आज फिर वही
मेरे खाने की थाली खाली है।
लोगों के गोदाम ,अन्न से भरपूर हैं
मेरे अधूरे सपने ,पूरी तरह चकना -चूर हैं।
आज भी मेरी विवाहिता ,लोगों के जूठन धोती है
आज भी मेरे बच्चे ,एक रोटी के लिए रोते हैं।
आज भी मैं वर्ष भर ,फसल कटने का इंतजार करता हूँ
थोड़ा ही सही उस कृपालु ,ईश्वर का ऐतबार करता हूँ।
फसल पक जाती है ,दाम मिलते नहीं
कर्ज़ इतना है,चुकता होता नहीं।
आज भी मेरे बच्चे भूखे हैं
मेरे खेत बिना पानी सूखे हैं।
फिर भी जीवन में एक आश बाकी है
थोड़ी ही सही ,अधूरी प्यास बाकी है।
" एकलव्य "
Very good poetry...... Real life of a farmer
जवाब देंहटाएंVery good poetry...... Real life of a farmer
जवाब देंहटाएंreally great job...keep it up..
जवाब देंहटाएंmy wishes alway wid U.....
Very nice Dhruv..... keep it up
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