tag:blogger.com,1999:blog-5383540233352593350.post2128907797864227932..comments2023-10-31T21:10:05.334+05:30Comments on "एकलव्य" : "और वे जी उठे" !'एकलव्य'http://www.blogger.com/profile/13124378139418306081noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-5383540233352593350.post-64728046278634465342021-07-11T22:40:43.718+05:302021-07-11T22:40:43.718+05:30बहुत बहुत सुंदर प्रस्तुतिबहुत बहुत सुंदर प्रस्तुतिBharti Dashttps://www.blogger.com/profile/04896714022745650542noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5383540233352593350.post-87763122451401530322021-07-11T22:29:59.250+05:302021-07-11T22:29:59.250+05:30एक वक़्त था,जब कभी
'मुर्दे' जगाता था
वो व...एक वक़्त था,जब कभी <br />'मुर्दे' जगाता था <br />वो वक़्त था,खामोख्वाह ही <br />क़ब्रें हिलाता था <br />जागे नहीं वो नींद से <br />मर्ज़ी थी जो उनकी <br /> कविता का यह बंध, एक जागरूक कवि की समाज को बदलने की आकांक्षा एवं न बदल पाने की विवशता को पाठक का हृदय झकझोरकर व्यक्त करता है। एक सशक्त अभिव्यक्ति।Meena sharmahttps://www.blogger.com/profile/17396639959790801461noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5383540233352593350.post-33390014181726111292021-07-11T22:27:53.368+05:302021-07-11T22:27:53.368+05:30इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.Meena sharmahttps://www.blogger.com/profile/17396639959790801461noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5383540233352593350.post-11709163790801625722019-02-24T00:30:38.901+05:302019-02-24T00:30:38.901+05:30प्रिय एकलव्य ------- आपकी लेखनी से निकली इस ओ...प्रिय एकलव्य ------- आपकी लेखनी से निकली इस ओज भरी रचना में एक संवेदन शील , और सपर्पित कवि के मन की टीस नजर आती है | एक सिरफिरे कलम के सिपाही का जोशीला उद्घोष है ये रचना | सचमुच आज देश , समाज विचार शून्य ज़िंदा लोगों का जमावड़ा मात्र बन कर रह गया है - उनको जगाने का ज़ज्बा हर एक में नहीं है | कोई निराला , प्रेमचंद , दुष्यंत कुमार सरीखा अपनी रचनाओं से सुप्त समाज को झझकोरने जरुर आयेगा | और आप में भी ऐसी ही संभावना नजर आती है प्रिय ध्रुव | आपकी लेखनी का ओज बना रहे ------ कितना सुंदर लिखा है आपने ---------<br />ज़िन्दों की बस्ती में <br />आकर यहाँ <br />आँसूं बहाता हूँ <br />जग जा ! ओ जीवित मुर्दे <br />मैं पगला दुहराता हूँ <br />व्यर्थ स्वप्नों की पोटली <br />बाँधता ज़रूर हूँ --------<br />इस सपनों की पोटली में बंधे सपने किसी दिन जरुर पूरे होंगे ऐसी कामना मन में रखनी चाहिए | जो अंदर से विकल हो कुछ करने का ज़ज्बा रखते है -- वही क्रांति के सूत्र धार बनते हैं | सस्नेह शुभकामना आपको |रेणुhttps://www.blogger.com/profile/16292928872766304124noreply@blogger.com